Supreme Court का बड़ा फैसला: Punjab में 1100+ Assistant Professor की नियुक्ति रद्द!

Supreme Court of India ने सोमवार को एक अहम फैसले में Punjab में Assistant Professors और Librarians की 1,158 नियुक्तियों को रद्द कर दिया है। अदालत ने इस भर्ती प्रक्रिया को “पूरी तरह मनमानी” (arbitrary and flawed) करार दिया। यह आदेश Justice Sudhanshu Dhulia और Justice K. Vinod Chandran की पीठ ने दिया, जिसने Punjab and Haryana High Court के उस फैसले को भी पलट दिया जिसमें इन नियुक्तियों को वैध माना गया था।

October 2021 में शुरू हुई थी Recruitment Process

यह भर्ती प्रक्रिया October 2021 में उस समय शुरू की गई थी, जब Director of Higher Education, Punjab ने विधानसभा चुनावों से पहले Assistant Professors और Librarians के पदों के लिए ऑनलाइन आवेदन मांगे थे। लेकिन जल्द ही इस पर विवाद खड़ा हो गया।

कई उम्मीदवारों ने आरोप लगाया कि merit-based selection को दरकिनार करते हुए selection process में transparency और fairness की कमी रही। इसके बाद यह मामला अदालत में पहुंचा।

Supreme Court ने क्या कहा?

अदालत ने कहा कि इस तरह की random और irrational recruitment सरकार की नीति का हिस्सा नहीं हो सकती। UGC Guidelines के अनुसार Assistant Professors की भर्ती के लिए केवल MCQ आधारित written test पर्याप्त नहीं है।

Bench की टिप्पणी:

“UGC जैसी संस्था ने साफ दिशानिर्देश दिए हैं कि चयन में उम्मीदवार की academic background, research, teaching experience आदि को ध्यान में रखा जाए। केवल एक वस्तुनिष्ठ परीक्षा से संपूर्ण योग्यता तय नहीं हो सकती।”

क्या गलतियां हुईं भर्ती में?

MCQ-based परीक्षा के अलावा कोई व्यापक मूल्यांकन नहीं किया गया।

Interview या Viva जैसी critical stage को हटा दिया गया, जो उच्च शिक्षा के लिए जरूरी मानी जाती है।

भर्ती प्रक्रिया को बिना किसी उचित सूचना या कारण के अचानक बदल दिया गया, जिससे यह biased और flawed हो गई।

Court की चेतावनी
Supreme Court ने यह भी कहा कि “कोई भी सरकारी निर्णय अगर logic और reason से परे होता है, तो वह arbitrary माना जाएगा।”
जल्दबाज़ी में लिए गए फैसले को “bad faith” (दुर्भावनापूर्ण)” का संकेत भी माना जा सकता है।

Recruitment Process में Reforms की मांग

यह फैसला ना केवल Punjab की भर्ती प्रणाली पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि पूरे देश में higher education recruitment standards को लेकर एक नई बहस छेड़ देता है। अदालत ने यह साफ किया कि transparency, objectivity और merit-based selection ही किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की पहचान हैं।