गंगा नदी वाराणसी में उल्टी बहती है? जानिए धार्मिक और भौगोलिक रहस्य!
गंगा नदी हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र और पूजनीय मानी जाती है। इसे माँ का दर्जा प्राप्त है और मान्यता है कि गंगा में स्नान मात्र से सारे पाप धुल जाते हैं, रोग-दोष दूर होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंगाजल को घर में रखने से नकारात्मकता दूर होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि काशी (वाराणसी) में गंगा नदी उल्टी बहती है? आइए जानते हैं इसके पीछे का रहस्य।
धार्मिक कारण: गंगा का दत्तात्रेय जी से जुड़ा आश्चर्यजनक इतिहास
पुराणों के अनुसार, जब गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरीं, तो उनका प्रवाह इतना तेज था कि वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर तपस्या कर रहे भगवान दत्तात्रेय का आसन और कमंडल नदी के बहाव में डेढ़ किलोमीटर तक बह गया। गंगा इस घटना के पश्चात् वापस लौटकर उन वस्तुओं को लेने आईं और भगवान दत्तात्रेय से क्षमा मांगने लगीं। तब से लेकर आज तक गंगा नदी लगभग डेढ़ किलोमीटर तक उल्टी बहती है, जो कि एक पवित्र घटना मानी जाती है।
भौगोलिक कारण: काशी का अद्भुत नदी घुमाव
वैसे तो गंगा नदी सामान्यतः दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है, लेकिन वाराणसी में इसका प्रवाह धनुष के आकार का हो जाता है। यहाँ गंगा दक्षिण से पूर्व, फिर पूर्वोत्तर दिशा में मुड़ती है। यह घुमाव काशी की भौगोलिक संरचना के कारण है, जिसके चलते मणिकर्णिका घाट से तुलसी घाट तक लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी में नदी में भंवर का निर्माण हो जाता है। इस वजह से गंगा नदी इस खंड में उल्टी बहती प्रतीत होती है।
तथ्य और स्थान
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मणिकर्णिका घाट से तुलसी घाट तक गंगा नदी उल्टी बहती है।
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इस दूरी में लगभग 45 घाट स्थित हैं।
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यह उल्टी धारा गंगा की धार्मिक महत्ता को और भी बढ़ा देती है।