Justice Yashwant Varma Case: Vice President Dhankhar's big question - "Why so much delay in FIR against the judge?"
दिल्ली हाई कोर्ट के जज रहे जस्टिस यशवंत वर्मा के घर में आग लगने के बाद कथित तौर पर बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के मामले में एफआईआर दर्ज नहीं होने को लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने इसे न्यायिक पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर सवाल बताते हुए कहा – “क्या यही है न्याय का नया मापदंड?“
‘किताबों में जो लिखा है, वो अलग है… लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और है’: धनखड़
एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा,
“दो महीने बीत चुके हैं। पूरे देश ने सुना कि एक जज के घर पर आग लगी और फिर भारी मात्रा में जली हुई नकदी मिलने की खबरें सामने आईं। आज तक एक एफआईआर भी दर्ज नहीं हुई? क्या यही लोकतंत्र और कानून का राज है?”
धनखड़ ने लुटियन्स दिल्ली में घटी इस घटना को लेकर कहा कि देश को सच जानने का हक है और यह मामला किसी भी तरह से दबाया नहीं जाना चाहिए।
Veeraswami Judgment पर पुनर्विचार की जरूरत?
धनखड़ ने 1991 के के. वीरास्वामी बनाम भारत संघ फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि समय आ गया है जब इसपर संविधान के अनुरूप पुनर्विचार होना चाहिए। इस फैसले में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों के खिलाफ मुकदमा चलाने से पहले केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी आवश्यक है।
“अगर भ्रष्टाचार या संदेह की स्थिति में भी कोई कार्यवाही न हो, तो यह न्यायिक व्यवस्था की नींव को हिलाने जैसा है।”
आंतरिक समिति की रिपोर्ट, फिर भी कार्रवाई क्यों नहीं?
मार्च 2025 में इस मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने तीन जजों की एक आंतरिक जांच समिति बनाई थी। इस समिति ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों को प्रथम दृष्टया विश्वसनीय माना और फिर उनका स्थानांतरण इलाहाबाद हाई कोर्ट कर दिया गया।
धनखड़ ने गवाहों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की जब्ती को भी सवालों के घेरे में बताया और कहा,
“यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है। ऐसा कैसे किया जा सकता है, और किस आधार पर?”
जनता का भरोसा ही सबसे बड़ा न्याय: उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि इस तरह के मामलों से जनता का न्यायपालिका पर से भरोसा कमजोर होता है। उन्होंने कहा:
“लोग कुछ नहीं जानना चाहते, उन्हें सिर्फ सच जानना है।”
“अगर कोई सोचता है कि वही सही है जो मैं कहता हूं, तो यह अहंकार है, न कि न्याय।”
क्या यह मामला न्यायिक जवाबदेही का Turning Point बनेगा?
इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर न्यायपालिका में पारदर्शिता, जवाबदेही और कानून के एक समान पालन को लेकर बहस छेड़ दी है। क्या लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए इस पर गंभीर कदम उठाए जाएंगे? क्या सुप्रीम कोर्ट Veeraswami Verdict की समीक्षा करेगा?
कानून के राज्य में “एक राष्ट्र, एक कानून” का पालन जरूरी
Justice Yashwant Varma Case केवल एक व्यक्ति से जुड़ा मामला नहीं, बल्कि पूरे देश की न्याय व्यवस्था की साख पर प्रश्न है।
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या FIR दर्ज होती है या यह मामला भी किसी राजनीतिक चुप्पी और संस्थागत अहंकार की भेंट चढ़ जाएगा।