Holtec International will build nuclear reactor in India, historic agreement reached after 20 years
भारत-अमेरिका नागरिक परमाणु समझौते के तहत 20 साल के लंबे इंतजार के बाद, अमेरिकी कंपनी होल्टेक इंटरनेशनल को भारत में परमाणु रिएक्टरों के निर्माण और डिजाइन की अनुमति मिल गई है। अमेरिकी ऊर्जा विभाग (DoE) से 26 मार्च को मिली मंजूरी के बाद यह ऐतिहासिक कदम उठाया गया है।
क्या है समझौते का महत्व?
होल्टेक इंटरनेशनल, भारतीय-अमेरिकी उद्योगपति क्रिस पी सिंह द्वारा स्थापित, अब भारत में छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) की तकनीक ट्रांसफर करेगी। यह तकनीक भारत की तीन प्रमुख कंपनियों – होल्टेक एशिया, टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स लिमिटेड और लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड – को सौंपी जाएगी। इस समझौते के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि इस तकनीक का उपयोग केवल शांतिपूर्ण परमाणु गतिविधियों के लिए किया जाएगा और इसे परमाणु हथियारों या किसी भी सैन्य उद्देश्य के लिए प्रयोग नहीं किया जाएगा।
भारत की ऊर्जा जरूरतों के लिए क्रांतिकारी कदम
भारत में परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में यह समझौता नई क्रांति ला सकता है। वर्तमान में भारत का परमाणु कार्यक्रम मुख्य रूप से भारी पानी रिएक्टरों (PHWRs) पर आधारित है, जबकि विश्वभर में प्रेसराइज्ड वाटर रिएक्टर (PWRs) तकनीक का व्यापक उपयोग हो रहा है। SMR-300 डिजाइन, जिसे अमेरिकी ऊर्जा विभाग के एडवांस्ड रिएक्टर डेमॉन्स्ट्रेशन प्रोग्राम द्वारा समर्थन प्राप्त है, भारत की ऊर्जा जरूरतों के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी विकल्प बन सकता है।
भारत और अमेरिका की साझेदारी का चीन पर असर
भारत-अमेरिका की यह साझेदारी न केवल भारत के ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाएगी बल्कि चीन के बढ़ते प्रभाव का भी मुकाबला करेगी। चीन भी छोटे रिएक्टरों के क्षेत्र में निवेश कर रहा है और इसे वैश्विक दक्षिण में अपनी कूटनीतिक पहुंच बढ़ाने का उपकरण मानता है।
होल्टेक के भविष्य की योजनाएं
होल्टेक इंटरनेशनल भविष्य में NPCIL, NTPC और एटॉमिक एनर्जी रिव्यू बोर्ड (AERB) को भी इस सूची में शामिल करने की योजना बना रही है, लेकिन इसके लिए भारत सरकार से गैर-प्रसार (Non-Proliferation) आश्वासन की आवश्यकता होगी। अगर प्रस्तावित निर्माण योजनाएं मंजूर होती हैं, तो होल्टेक गुजरात स्थित निर्माण यूनिट की उत्पादन क्षमता को दोगुना कर सकती है।
भारत की ऊर्जा क्रांति का नया अध्याय
यह समझौता भारत के ऊर्जा क्षेत्र में एक नए अध्याय की शुरुआत करेगा। अमेरिकी तकनीक के उपयोग से भारत ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकेगा और दुनिया में अपनी स्थिति मजबूत करेगा। यह कदम न केवल ऊर्जा सुरक्षा बल्कि रणनीतिक और भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण साबित होगा।