Caste Census से बदलेगा आरक्षण का गणित? Supreme Court की सीमा पर मंडरा रहा सवाल

भारत में Caste Census की वापसी ने Reservation System पर चल रही बहस को नया मोड़ दे दिया है। दशकों से चली आ रही सुप्रीम कोर्ट की 50% आरक्षण सीमा अब चुनौती के घेरे में है।

1992 में Indra Sawhney vs Union of India मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण (Reservation) की सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती। कोर्ट ने Mandal Commission Recommendations को मानते हुए OBC वर्ग के लिए 27% आरक्षण को मंजूरी दी, लेकिन साथ ही ‘Creamy Layer’ को बाहर रखने और Exceptional Circumstances को छोड़कर सीमा न लांघने का निर्देश दिया।

Supreme Court के पुराने फैसले और Reservation की सीमाएं

2006 में M. Nagaraj case में सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST को Promotions में आरक्षण की इजाज़त दी लेकिन उसके लिए तीन शर्तें भी रखीं —

  1. वर्ग का पिछड़ापन

  2. Representation में कमी

  3. Administrative Efficiency पर असर न पड़े

2018 के Jarnail Singh ruling में अदालत ने SC/ST वर्ग के लिए पिछड़ापन साबित करने की जरूरत को हटाया, लेकिन Representation Gap और Data Collection की अनिवार्यता को बनाए रखा।

कई बार राज्यों ने Supreme Court की तय सीमा को पार कर Reservation देने की कोशिश की — जैसे मराठा आरक्षण (Maratha Reservation) और जाटों को OBC में शामिल करना — लेकिन अदालत ने ठोस आंकड़े और डेटा के अभाव में इन प्रयासों को निरस्त कर दिया।

Constitutional Amendment और 10% EWS आरक्षण

2019 में केंद्र सरकार ने 103rd Constitutional Amendment के ज़रिए 10% EWS Reservation लागू किया, जो कि 50% सीमा के ऊपर था। हालांकि 2022 में Supreme Court Validated EWS Quota और कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान सम्मत है।

इस फैसले ने यह साफ कर दिया कि अगर ठोस तर्क और डेटा हो, तो 50% की सीमा को अपवादस्वरूप पार किया जा सकता है।

Caste Census और Future of Reservation in India

अब केंद्र सरकार द्वारा घोषित Nationwide Caste Census सामाजिक और आर्थिक Representation के वास्तविक आँकड़े सामने लाएगा। इससे ये तय करना आसान होगा कि किन वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला और किसे आरक्षण की जरूरत है।

इस जनगणना के डेटा के आधार पर सरकार Social Justice Policies में बदलाव कर सकती है और Supreme Court द्वारा तय की गई शर्तों को भी पूरा कर सकती है।

 बदल सकता है आरक्षण का चेहरा?

अब सवाल यह है कि क्या Caste Census Data आने के बाद सुप्रीम कोर्ट को 50% की सीमा पर पुनर्विचार करना पड़ेगा? क्या भविष्य में राज्यों को ज्यादा लचीलापन मिलेगा आरक्षण तय करने में?

ये सभी सवाल भारत की सामाजिक नीति और संविधान की व्याख्या को फिर से दिशा दे सकते हैं।