Tension in the politics of block pramukh election in Ranikhet: Sudden disappearance of BDC members causes panic
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के शांतिपूर्ण संपन्न होने के बाद रानीखेत क्षेत्र में ब्लॉक विकास परिषद (बीडीसी) के कई निर्वाचित सदस्यों के अचानक लापता होने से राजनीतिक माहौल गर्मा गया है। बीडीसी सदस्यों के गायब होने को आगामी ब्लॉक प्रमुख चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है, क्योंकि इस चुनाव में सिर्फ बीडीसी सदस्यों को ही मतदान करने का अधिकार प्राप्त होता है।
बीडीसी सदस्यों के लापता होने से चुनाव प्रक्रिया पर सवाल
मतगणना पूरी होने के बाद कई बीडीसी सदस्य अपने क्षेत्रों से गायब हैं और उनके परिजन भी खुलकर कुछ कहने से बच रहे हैं। इस स्थिति ने स्थानीय राजनीति में संशय और सियासी सस्पेंस बढ़ा दिया है। चर्चा है कि ब्लॉक प्रमुख पद के दावेदारों ने सदस्यों को अपने पक्ष में बनाए रखने के लिए उन्हें विशेष सुविधाओं के साथ सुरक्षित और गुप्त स्थानों पर रखा है। इसके साथ ही उनकी लगातार निगरानी भी की जा रही है।
पुलिस में कोई गुमशुदगी की तहरीर नहीं
आश्चर्य की बात यह है कि अब तक किसी भी लापता बीडीसी सदस्य की गुमशुदगी की तहरीर पुलिस में दर्ज नहीं कराई गई है। एक स्थानीय निवासी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मतगणना के बाद से उनके बीडीसी सदस्य का कोई पता नहीं है और परिवार वाले भी सवालों से बचते नजर आ रहे हैं। यह सब इस मामले में कुछ गड़बड़ी होने के संकेत दे रहा है।
बीडीसी की भूमिका और ब्लॉक प्रमुख चुनाव का महत्व
बीडीसी सदस्य ब्लॉक प्रमुख चुनाव में निर्णायक वोटर होते हैं। इसलिए ब्लॉक प्रमुख बनने की सियासत में ये सदस्यों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। किसी भी दल या उम्मीदवार के लिए बीडीसी सदस्यों का समर्थन जीत की कुंजी होता है।
होटल पॉलिटिक्स और प्रलोभन की खबरें
सूत्रों के मुताबिक, कई बीडीसी सदस्यों को विरोधी गुटों से बचाने के लिए रिजॉर्ट या होटलों में ठहराया गया है। सदस्यों की निगरानी की जा रही है और उन्हें चुनावी समर्थन के बदले में प्रलोभन दिए जा रहे हैं। इस रणनीति को लेकर गांवों में कड़ी चर्चा हो रही है और इसे चुनाव की निष्पक्षता पर बड़ा सवाल माना जा रहा है।
निष्पक्ष चुनाव और लोकतंत्र की चुनौती
यह मामला न केवल चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है, बल्कि ग्रामीण इलाकों में लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती के लिए भी चिंता का विषय बन गया है। जनता इस तरह की रणनीतियों से चुनाव की सच्चाई और निष्पक्षता पर विश्वास खो सकती है।