How did the postal service start in India? Know the 251 year old story
भारत में डाक सेवा की शुरुआत: 251 साल पुरानी कहानी
31 मार्च 1774 का दिन भारतीय डाक सेवा के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ, जब वारेन हेस्टिंग्स ने कलकत्ता (अब कोलकाता) में देश के पहले डाकघर की स्थापना की। इस ऐतिहासिक कदम ने प्रशासनिक और व्यापारिक संचार को सुगम बनाते हुए आम लोगों के लिए एक मजबूत संपर्क तंत्र की नींव रखी।
डाक सेवा की शुरुआत कैसे हुई?
18वीं शताब्दी के मध्य में ब्रिटिश शासन भारत में अपनी जड़ें जमा रहा था, लेकिन संचार का कोई व्यवस्थित तंत्र नहीं था। व्यापारी, सैनिक और अधिकारी निजी दूतों और व्यापारिक जहाजों पर निर्भर थे, जो महंगे और असुरक्षित थे। 1772 में बंगाल के पहले गवर्नर-जनरल बने वारेन हेस्टिंग्स ने एक ऐसी डाक सेवा की कल्पना की, जो न केवल प्रशासनिक जरूरतें पूरी करे बल्कि आम जनता तक भी पहुंचे।
कलकत्ता जनरल पोस्ट ऑफिस की स्थापना
31 मार्च 1774 को वारेन हेस्टिंग्स ने कलकत्ता में देश के पहले डाकघर की स्थापना की, जिसे ‘कलकत्ता जनरल पोस्ट ऑफिस’ के नाम से जाना गया। यह डाकघर आज के कोलकाता के बीबीडी बाग इलाके में स्थित था और ब्रिटिश शासन की डाक प्रणाली का आधार बना।
घोड़े और नाव के सहारे चिट्ठियों की डिलीवरी
उस समय संदेश भेजना बेहद कठिन था। डाक सेवा में घोड़ों पर सवार डाकिए लंबी दूरी तय करते थे, जबकि नदियों के किनारे नावों का उपयोग होता था। बंगाल की नदियों ने डाक सेवा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
डाक सेवा की कीमत और चुनौतियां
शुरुआत में डाक सेवा मुख्य रूप से ब्रिटिश अधिकारी और व्यापारियों के लिए थी। पत्र भेजने की कीमत दूरी और वजन पर निर्भर करती थी, जिससे यह आम जनता के लिए महंगी थी। वारेन हेस्टिंग्स ने डाक मार्गों पर चौकियां बनवाईं, जहां घोड़े बदले जाते थे और डाकिए आराम करते थे। यह प्रणाली मध्यकालीन यूरोप की पोस्टल रिले सेवा से प्रेरित थी।
आज कैसा दिखता है देश का पहला डाकघर?
वर्तमान में, कलकत्ता का पहला डाकघर कोलकाता जनरल पोस्ट ऑफिस (GPO) के रूप में जाना जाता है। 1864 में बनी यह इमारत ब्रिटिश वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसके ऊंचे गुंबद और स्तंभ इसे शाही रूप देते हैं। यहाँ एक डाक संग्रहालय भी है, जहां पुराने डाक टिकट, उपकरण और पत्र देखे जा सकते हैं।
डाक सेवा की विरासत: 251 साल का गौरव
251 वर्षों में भारतीय डाक सेवा ने लंबा सफर तय किया है, जो डिजिटल युग में भी अपनी अहमियत बनाए हुए है। यह कहानी हमें उस समय की याद दिलाती है जब एक चिट्ठी का सफर घोड़ों और नावों के सहारे तय होता था।