हिमालय केवल प्रतीक नहीं, अब बनना होगा पृथ्वी की जलवायु सुरक्षा का केंद्र : दुर्गेश पंत

हिमालय की ओर खिंचाव एक आंतरिक पुकार है-स्वामी विवेकानंद ने सदियों पहले ये शब्द कहे थे। उनके लिए हिमालय केवल शांति और एकांत का प्रतीक नहीं थे, बल्कि यह आत्मबल, प्रकृति और सभ्यता की अदम्य शक्ति के रूप में सामने आए। आज, जब मानव सभ्यता तकनीकी जटिलताओं और पर्यावरणीय संकटों के दोराहे पर खड़ी है, विवेकानंद की यह दूरदृष्टि और अधिक प्रासंगिक हो गई है।

हिमालय एक ओर जहां जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हानि और प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र हैं, वहीं दूसरी ओर यह क्षेत्र एक जबरदस्त resilience (सहिष्णुता) का उदाहरण भी है। इन्हीं कारणों से 28-30 नवंबर 2025 को देहरादून में “वर्ल्ड समिट ऑन डिजास्टर मैनेजमेंट (WSDM 2025)” का आयोजन किया जा रहा है। इसका उद्देश्य है — “स्थायी समुदायों के निर्माण हेतु अंतरराष्ट्रीय सहयोग को सशक्त बनाना, जो कि 2023 में हुए ऐतिहासिक सिलक्यारा रेस्क्यू ऑपरेशन की दूसरी वर्षगांठ को भी चिह्नित करेगा।

हिमालय: ‘तीसरा ध्रुव’ और एशिया की जीवनरेखा

हिमालय को अक्सर “तीसरा ध्रुव” कहा जाता है। ये न केवल एशिया की प्रमुख नदियों  गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु आदि का स्रोत हैं, बल्कि वैश्विक जलवायु संतुलन में भी इनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। परंतु, ICIMOD की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, क्षेत्र के 8,000 ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं और कई 2100 तक समाप्त हो सकते हैं। इससे पूरे एशिया में जल सुरक्षा संकट उत्पन्न हो सकता है।

बढ़ते खतरे: आपदाएं, पलायन और अस्थिरता

बाढ़, भूस्खलन, हिमस्खलन जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं, जिससे कृषि, पर्यटन, आधारभूत ढांचे और आजीविका पर गहरा असर पड़ा है। इसके साथ ही, भौगोलिक राजनीति और बिखरी हुई पर्यावरणीय नीतियां प्रभावी सीमा-पार सहयोग में बड़ी बाधा हैं। हिमालयी असंतुलन से भोजन और जल संकट, आर्थिक अस्थिरता और संघर्षों की आशंका गहराती है।

UCOST की भूमिका: हिमालयी ज्ञान और Cutting-edge विज्ञान का संगम

Uttarakhand State Council for Science and Technology (UCOST), ISRO, DRDO, CSIR जैसे राष्ट्रीय संस्थानों के साथ मिलकर एक collaborative ecosystem बना रहा है, जहां academic research, traditional knowledge, और climate innovation को जोड़ा जा रहा है। UCOST की यह पहल बताती है कि भविष्य केवल AI, satellites या modelling से नहीं चलेगा — बल्कि उसे people-powered knowledge systems की भी जरूरत है।

WSDM 2025: वैश्विक परिवर्तन की आधारशिला

UCOST (उत्तराखंड राज्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद) इस परिवर्तन का नेतृत्व कर रहा है। विज्ञान, नीति, पारंपरिक ज्ञान और तकनीक को एकीकृत करते हुए, WSDM 2025 निम्नलिखित प्रमुख पहलुओं पर केंद्रित होगा:

 Trans-Himalayan Resilience Framework

हिमालयी देशों को जोड़ने वाला एक साझेदार ढांचा, जिसमें संयुक्त जलवायु रणनीति, साझा चेतावनी प्रणाली और सामूहिक आपदा प्रबंधन प्रोटोकॉल होंगे।

 Global Commitments का स्थानीयकरण

Sendai Framework, Paris Agreement और SDGs जैसे वैश्विक लक्ष्यों को जमीनी कार्यों में बदलने का अवसर — विशेषकर पर्वतीय और सीमावर्ती क्षेत्रों में।

 Climate Finance और Green Investment

बहुपक्षीय बैंक, निजी निवेशक और वैश्विक फाउंडेशन को जोड़ते हुए Himalaya-specific फाइनेंस मॉडल विकसित किए जाएंगे — nature-based solutions और green infrastructure पर जोर होगा।

 युवा, महिलाएं और स्थानीय समुदाय

महिलाओं द्वारा संचालित पहलकदमियां, युवा नवाचार और जनजातीय पारंपरिक ज्ञान — यह समावेशी दृष्टिकोण प्रभावी लचीलापन (resilience) की नींव है।

 विज्ञान और अध्यात्म का संगम

हिमालय सदियों से आध्यात्मिक चेतना और आंतरिक संयम का प्रतीक रहे हैं। आज की जलवायु बेचैनी के युग में, नैतिक नेतृत्व और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का यह मेल क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है।

हिमालय — केवल प्रतीक नहीं, बल्कि वैश्विक मिशन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार उत्तर भारत के पर्वतीय क्षेत्र को “इस दशक का केंद्र” बताया है। हिमालय अब केवल दर्शनीय स्थल नहीं, बल्कि वैश्विक आपदा प्रबंधन, जलवायु सहयोग और सतत विकास की दिशा में एक प्रेरक शक्ति बन चुके हैं।

WSDM 2025 एक नया दिशा संकेतक है — जो हमें बताता है कि यदि हमें वास्तव में वैश्विक आपदाओं का सामना करना है, तो हिमालय को वैश्विक संवाद का मुख्य हिस्सा बनाना अनिवार्य है।

लेखक: प्रोफेसर और महानिदेशक दुर्गेश पंत , उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (UCOST)