बैसाखी 2025: गंगा घाटों पर श्रद्धा की लहर और सिख इतिहास की झलक

बैसाखी पर्व : भक्तों ने गंगा में आस्था की डुबकी लगाई

बैसाखी पर्व के मौके पर, श्रद्धालुओं ने गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाकर अपने धार्मिक कर्तव्यों को निभाया। सुबह से ही गंगा घाटों पर भारी भीड़ जमा होनी शुरू हो गई, और देर शाम तक श्रद्धालुओं का स्नान का सिलसिला जारी रहा। गंगा स्नान के बाद, भक्तों ने दीपदान किया और इस धार्मिक अवसर को बड़े श्रद्धा भाव से मनाया। इसके बाद, घाटों और तटों पर बैठे साधु, फक्कड़ बाबा और जरूरतमंदों को अन्न, धन, वस्त्र आदि का दान भी किया गया।

बैसाखी के इस पवित्र पर्व पर त्रिवेणी घाट, बहत्तर सीढ़ी गंगेश्वर घाट, साईं घाट, मुनिकीरेती स्थित पूर्णानंद घाट, तपोवन, लक्ष्मणझूला, स्वर्गाश्रम, श्यामपुर, हरिपुरकलां जैसे प्रमुख गंगा घाटों पर भक्तों का जमावड़ा था। ये सभी श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाकर पुण्य के भागी बने। इस अवसर पर विभिन्न धर्मिक संगठनों द्वारा प्रसाद भी वितरित किया गया।

आचार्य सुमित गौड़ ने बताया कि बैसाखी पर्व रबी फसल के पकने का समय होता है। जब गेहूं की फसल खेतों में सुनहरी होकर लहलहाने लगती है, तो किसान अपनी मेहनत का फल देखकर खुश होते हैं। इस खुशी को मनाने के लिए ही बैसाखी पर्व मनाया जाता है। यह पर्व न केवल एक कृषि पर्व है, बल्कि इसकी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता भी है।

बैसाखी की कहानी सिख धर्म से भी जुड़ी है, खासकर गुरु गोविंद सिंह के खालसा पंथ की स्थापना से। इस दिन को सिखों के नए साल के रूप में मनाया जाता है और इसे मेष संक्रांति भी कहा जाता है। खालसा पंथ हमें धर्म, साहस और सेवा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है, और इस दिन का महत्व सभी धर्मों और समुदायों के लिए समान होता है।

तीर्थनगरी के लक्ष्मणझूला रोड स्थित हेमकुंट साहिब गुरुद्वारे में भी बैसाखी का पर्व धूमधाम से मनाया गया। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ गुरुद्वारे में सुबह से ही पहुंचने लगी। सिख संगत ने गुरुवाणी का पाठ किया, शबद-कीर्तन किया और गुरुजी की महिमा का गायन किया। पूरे गुरुद्वारे को रंग-बिरंगी माला और झालरों से सजाया गया, जिससे वातावरण बेहद भव्य और दिव्य लग रहा था।

बैसाखी पर्व, धर्म, संस्कृति और आस्था का संगम है, जो समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करने का कार्य करता है।