Badrinath Dham Master Plan: सरकार पर तानाशाही के आरोप, बड़े आंदोलन की चेतावनी

उत्तराखंड के Badrinath Dham में लागू किए जा रहे Master Plan को लेकर फिर से विवाद खड़ा हो गया है। Char Dham Yatra के तीर्थ-पुरोहितों और हक-हकूकधारियों की Mahapanchayat ने प्रदेश सरकार पर आरोप लगाया है कि वह स्थानीय व्यापारियों और हक-हकूकधारियों के अधिकारों की अनदेखी कर धाम के पौराणिक स्वरूप में बदलाव कर रही है। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो बड़े आंदोलन की संभावना है।

सरकार पर तानाशाही का आरोप

बीते रविवार को हरिद्वार रोड स्थित भगवान आश्रम में Mahapanchayat की बैठक हुई, जिसकी अध्यक्षता Krnashkant Kothiyal ने की। उन्होंने आरोप लगाया कि Badrinath Master Plan के नाम पर प्रदेश सरकार मनमानी कर रही है।

बदरीनाथ भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है। साल 1976 में उत्तर प्रदेश के शासनकाल में गठित N.D. Tiwari Committee की रिपोर्ट में भी कहा गया था कि यह क्षेत्र एक geographical island पर बसा है और किसी भी तरह का छेड़छाड़ प्राकृतिक आपदाओं के लिए जोखिमपूर्ण हो सकता है।

स्थानीय हितों की अनदेखी

महापंचायत से जुड़े तीर्थ-पुरोहितों का कहना है कि मास्टर प्लान के तहत सरकार न केवल धार्मिक और पौराणिक स्वरूप में छेड़छाड़ कर रही है, बल्कि local business owners और हक-हकूकधारियों के अधिकारों की भी उपेक्षा हो रही है। उनका कहना है कि अगर परंपरा और स्थानीय आजीविका को नष्ट किया गया, तो यह समाज के लिए गंभीर संकट बन सकता है।

आंदोलन की चेतावनी

बैठक में उपस्थित पुरोहितों और प्रतिनिधियों ने सरकार को स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि उनकी मांगों पर शीघ्र ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो बड़े पैमाने पर आंदोलन किया जाएगा। इस मौके पर रमाबल्लभ भट्ट, सुरेंद्र भंडारी, आशाराम व्यास, संजय शास्त्री, अनिल स्वामी और कुसुम जोशी समेत कई अन्य लोग मौजूद थे।

बदरीनाथ धाम Master Plan क्या है?

Badrinath Master Plan लगभग 424 करोड़ की परियोजना है, जिसका लक्ष्य धाम को एक Smart Spiritual Hill Town के रूप में विकसित करना है।

इसमें शामिल हैं:

Arrival Plaza और Parking facilities

संग्रहालय और आर्ट गैलरी

घाट, सड़कें और पेयजल व्यवस्था

स्वच्छता और आधुनिक सुविधाएं

योजना का उद्देश्य है कि 202526 तक pilgrims visiting Badrinath Dham को बेहतर सुविधा मिले और धाम की पौराणिक गरिमा बनी रहे। हालांकि तीर्थ-पुरोहितों और स्थानीय लोगों का कहना है कि इससे traditional look और स्थानीय हितों की अनदेखी हो रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह क्षेत्र highly sensitive zone में आता है और किसी भी बदलाव से आपदा का खतरा बढ़ सकता है।